Madhu varma

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लेखनी कविता -जागना अपराध -माखन लाल चतुर्वेदी

जागना अपराध -माखन लाल चतुर्वेदी 


जागना अपराध!
इस विजन - वन गोद में सखि,
मुक्ति - बन्धन - मोद में सखि,
विष - प्रहार - प्रमोद में सखि,

मृदुल भावों
 स्नेह दावों
 अश्रु के अगणित अभावों का शिकारी-
आ गया विध व्याध;
जागना अपराध!
बंक वाली, भौंह काली,
मौत, यह अमरत्व ढाली,
कस्र्ण धन - सी,
तरल घन - सी
 सिसकियों के सघन वन-सी,
श्याम - सी,
ताजे, कटे - से,
खेत - सी असहाय,
कौन पूछे?
पुस्र्ष या पशु
 आय चाहे जाय,
खोलती सी शाप,
कसकर बाँधती वरदान-
पाप में-
कुछ आप खोती
 आप में-
कुछ मान।
 ध्यान में, घुन में,
हिये में, घाव में,
शर में,
आँख मूँदें,
ले रही विष को-
अमृत के भाव!
अचल पलक,
अचंचला पुतली
 युगों के बीच,
दबी - सी,
उन तरल बूँदों से
 कलेजा सींच,
खूब अपने से
 लपेट - लपेट
 परम अभाव,
चाव से बोली,
प्रलय की साध-
जागना अपराध!

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