Madhu varma

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लेखनी कविता -घूस माहात्म्य - काका हाथरसी

घूस माहात्म्य / काका हाथरसी 


कभी घूस खाई नहीं, किया न भ्रष्टाचार
 ऐसे भोंदू जीव को बार-बार धिक्कार
 बार-बार धिक्कार, व्यर्थ है वह व्यापारी
 माल तोलते समय न जिसने डंडी मारी
 कहँ 'काका', क्या नाम पायेगा ऐसा बंदा
 जिसने किसी संस्था का, न पचाया चंदा

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