Madhu varma

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लेखनी कविता - पिल्ला - काका हाथरसी

पिल्ला / काका हाथरसी 


पिल्ला बैठा कार में, मानुष ढोवें बोझ
 भेद न इसका मिल सका, बहुत लगाई खोज
 बहुत लगाई खोज, रोज़ साबुन से न्हाता
 देवी जी के हाथ, दूध से रोटी खाता
 कहँ 'काका' कवि, माँगत हूँ वर चिल्ला-चिल्ला
 पुनर्जन्म में प्रभो! बनाना हमको पिल्ला

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