इकदास्तां ,भाग=4

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 खामोशी से सिगरेट पर सिगरेट फूंक रहा था विजय। वो भी बिल्कुल खामोशी से उस धुएँ को  ऐसे जर्ब  करती जा रही थी,जैसे वो धुआँ न होकर कोई जीवन दायनी हवा ...

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