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अध्याय ६ श्रीभगवान् ने कहा - - फल- आश तज, कर्तव्य कर्म सदैव जो करता, वही । योगी व संन्यासी, न जो बिन अग्नि या बिन कर्म ही ॥१॥ वह योग ...