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त्रिपदी कृष्ण सदा प्रेयसी तुम्हें बुलाती नित्य प्रीति के गीत सुनाती भजन कृष्ण के मन से गाती। घन बनकर तुम बरसो प्रियवर शुष्क धरा अब ताके अंबर प्रेम-सुधा से भर दो ...