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*ग़ज़ल* जब तलक हाथ पांव चलते हैं। अपनी पोशाक हम बदलते हैं। लोग जो खुश दिली से मिलते हैं। शहद वाणी में उनकी घुलते हैं। ज़द प आते न जो खि़जा़ओ ...