कीर्ति अनोखी भरा संकुचन

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कीर्ति अनोखी भरा संकुचन  गंध-हीन हारा हो उपवन । सज-धज पूर्ण भले हो जाये प्रेम-रहित मन है कालापन ।। अंधियारी है गली तुम्हारी  पावजेब पहनो रत्नारी । गिरधर की वंशी रूठी ...

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