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दर्द मेरा मैं खुद से छिपाता रहा, वक्त की रेत को दफनाता रहा। जुगलबन्दी रही अश्क से बूँद की, मैं समंदर को खारा बनाता रहा। सहरा-सहरा भटकता रहा तिश्नगी, दूर दरिया ...