द्विसदन

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ऐसा जीवन नारी का,  जैसे हो तलवारों में दो धार। मिलती दिशा जो इनको,  बहती जाती है उस ढार। दुहिता जनक हृदयांश है,  निलय होता पूरा संसार। परिणय रच वनिता होती,  ...

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