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कर्ज़-ए-उल्फत तो, पतंगे को चुकाना ही पड़े. शम्मा के आगोश में , ख़ुद को मिटाना ही पड़े. इस सराय में किसी का घर नहीं बसता कभी, रात को ठहरे मुसाफ़िर, सुबह ...