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उम्र के इस पड़ाव पर जब मुड़कर देखती हूँ पीछे तो स्मृतियों में केवल दिखाई देता है बचपन ... कितना सुंदर, निश्छल, स्वतंत्र एक पंछी की भांति उड़ाने भरता हुआ। ...