विसर्जन

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विसर्जन करती हूँ अपने अस्तित्व के उस हिस्से का जिसने सिर्फ सहना सीखा, आवाज़ उठाना भूल गया। चार दीवारी को समझ ली अपनी दुनिया, बाहर की दुनिया से अपना नाता तोड़ ...

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