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मैं बेचैन सी ख़्वाबों को तलाश रही थी इधर-उधर, कुछ तकिये के नीचे मिले भीगे हुए, कुछ डायरी के पन्नों में अधूरे पड़े हुए। उम्मीदों की धूप लगा दूँ इन्हें क्या, ...