जिन्दगी

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जिन्दगी क्षीण हो गयी अब जिन्दगी की शाम दौड धूप है अधिक रह गया कम काम औहदा इंसान का छोटा है बडा पदनाम नही रही लिहाज उम्र की  लुप्त हो गया ...

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