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साहिल पर आ कर बिखरती क्यों हैं मंज़िल पर आ कर ठिठकती क्यों हैं समझे ना ज़िंदगी का फ़लसफ़ा कोई क़रीब आके हाथ से फिसलती क्यों है शहला जावेद ...