माँ

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#लेखनी दैनिक काव्य प्रतियोगिता जीवन की उलझनों में उलझी हूँ कि तुमसे बात भी न कर पाऊं मैं लिखने जो बैठी तुम पर कविता तुम्हे सोचती ही रह जाऊं मैं कभी ...

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