दिनकर

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दिनकर ****** दिनकर तू क्यों इतना तपता है। सर्दी में छुपता फिरता है।। मेघ गगन में यदि छा जाते। बाहर कभी नहीं दिखता है।। दिनकर तू क्यों इतना तपता है सर्दी ...

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