स्वैच्छिक

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🌹🌹🌹🌹ग़ज़ल 🌹🌹🌹🌹 मस्त दिन लगने लगे रातें सुहानी हो गईं। आपसे दो चार बातें क्या ज़बानी हो गईं। कोई ताज़ा ज़ख़्म सोचा हो तो मुझको दीजिए। आप की पिछली निशानी सब ...

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