हम तो ऐसे हैं की हर रँग मे ढल जाते हैं

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हम तो ऐसे हैं की हर रंग मे ढल जाते हैं। ठोकरें खाते हैं हम  और संभल जाते हैं। कांच के जिस्म में रखते हैं जिगर पत्थर का। कौन कहता है ...

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