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भूत पिसाच निकट नहीं आवे - डरावनी कहानियाँ 1930 की बात है। एक शाम तीन बजे हम मानकुलम विश्राम घर पहुंचे। मेरे साथ जाफना केन्द्रीय कालेज के मेरे अध्यापक साथी एस0 ...