लेखनी कविता - आग की भीख -रामधारी सिंह दिनकर

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आग की भीख -रामधारी सिंह दिनकर धुँधली हुईं दिशाएँ, छाने लगा कुहासा,  कुचली हुई शिखा से आने लगा धुआँ-सा।   कोई मुझे बता दे, क्या आज हो रहा है;  मुँह को छिपा ...

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