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आशा का दीपक -रामधारी सिंह दिनकर वह प्रदीप जो दीख रहा है झिलमिल दूर नहीं है; थक कर बैठ गये क्या भाई मन्जिल दूर नहीं है। चिन्गारी बन गयी लहू की ...