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दिल्ली (कविता) -रामधारी सिंह दिनकर यह कैसी चांदनी अम के मलिन तमिर की इस गगन में, कूक रही क्यों नियति व्यंग से इस गोधूलि-लगन में? मरघट में तू साज रही दिल्ली ...