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जनतन्त्र का जन्म -रामधारी सिंह दिनकर सदियों की ठंडी - बुझी राख सुगबुगा उठी, मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है; दो राह, समय के रथ का घर्घर - नाद सुनो, ...