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समुद्र का पानी -रामधारी सिंह दिनकर बहुत दूर पर अट्टहास कर सागर हँसता है। दशन फेन के, अधर व्योम के। ऐसे में सुन्दरी ! बेचने तू क्या निकली है, अस्त-व्यस्त, झेलती ...