लेखनी कविता - हो गई है पीर पर्वत - दुष्यंत कुमार

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हो गई है पीर पर्वत / दुष्यंत कुमार  हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए  इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए  आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी  शर्त ...

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