लेखनी कविता -दूसरो न कोई -मीरां

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दूसरो न कोई -मीरां  मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई।।  जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई।  तात मात भ्रात बंधु आपनो न कोई।।  छांडि दई कुलकी कानि कहा करिहै ...

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