लेखनी कविता -क्या जलने की रीत -महादेवी वर्मा

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क्या जलने की रीत -महादेवी वर्मा  क्या जलने की रीति,  शलभ समझा, दीपक जाना।  घेरे हैं बंदी दीपक को, ज्वाला की बेला, दीन शलभ भी दीपशिखा से, सिर धुन धुन खेला। ...

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