लेखनी कविता - जब यह दीप थके -महादेवी वर्मा

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जब यह दीप थके -महादेवी वर्मा  जब यह दीप थके तब आना।  यह चंचल सपने भोले हैं, दृग-जल पर पाले मैने, मृदु  पलकों पर तोले हैं; दे सौरभ के पंख इन्हें ...

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