लेखनी कविता - दीपक अब रजनी जाती रे -महादेवी वर्मा

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दीपक अब रजनी जाती रे -महादेवी वर्मा  दीपक अब रजनी जाती रे  जिनके पाषाणी शापों के  तूने जल जल बंध गलाए  रंगों की मूठें तारों के  खील वारती आज दिशाएँ  तेरी ...

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