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बिनती भरत करत कर जोरे -तुलसीदास बिनती भरत करत कर जोरे। दिनबन्धु दीनता दीनकी कबहुँ परै जनि भोरे॥१॥ तुम्हसे तुम्हहिं नाथ मोको, मोसे, जन तुम्हहि बहुतेरे। इहै जानि पहिचानि प्रीति छमिये ...