लेखनी कविता - धनुर्धर राम -तुलसीदास

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धनुर्धर राम -तुलसीदास  सुभग सरासन सायक जोरे॥  खेलत राम फिरत मृगया बन, बसति सो मृदु मूरति मन मोरे॥  पीत बसन कटि, चारू चारि सर, चलत कोटि नट सो तृन तोरे।  स्यामल ...

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