लेखनी कविता - दो गुलाब के फूल छू गए जब से होठ अपावन मेरे -गोपालदास नीरज

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दो गुलाब के फूल छू गए जब से होठ अपावन मेरे -गोपालदास नीरज  दो गुलाब के फूल छू गए जब से होठ अपावन मेरे  ऐसी गंध बसी है मन में सारा ...

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