लेखनी कविता - स्वप्न झरे फूल से, मीत चुभे शूल से -गोपालदास नीरज

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स्वप्न झरे फूल से, मीत चुभे शूल से -गोपालदास नीरज  स्वप्न झरे फूल से, मीत चुभे शूल से  लुट गये सिंगार सभी बाग़ के बबूल से  और हम खड़े - खड़े ...

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