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स्वप्न झरे फूल से, मीत चुभे शूल से -गोपालदास नीरज स्वप्न झरे फूल से, मीत चुभे शूल से लुट गये सिंगार सभी बाग़ के बबूल से और हम खड़े - खड़े ...