लेखनी कविता -चांणक का अंग -कबीर

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चांणक का अंग -कबीर  इहि उदर कै कारणे, जग जाच्यों निस जाम।  स्वामीं-पणो जो सिरि चढ्यो, सर्‌यो न एको काम॥1॥ स्वामी हूवा सीतका, पैकाकार पचास।  रामनाम कांठै रह्या, करै सिषां की ...

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