लेखनी कविता - नैया पड़ी मंझधार गुरु बिन कैसे लागे पार -कबीर

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नैया पड़ी मंझधार गुरु बिन कैसे लागे पार -कबीर  नैया पड़ी मंझधार गुरु बिन कैसे लागे पार ॥  साहिब तुम मत भूलियो लाख लो भूलग जाये ।  हम से तुमरे और ...

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