लेखनी कविता -उपदेश का अंग -कबीर

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उपदेश का अंग -कबीर  बैरागी बिरकत भला, गिरही चित्त उदार।  दुहुं चूका रीता पड़ैं , वाकूं वार न पार॥1॥  'कबीर' हरि के नाव सूं, प्रीति रहै इकतार।  तो मुख तैं मोती ...

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