लेखनी कविता - काहे री नलिनी तू कुमिलानी -कबीर

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काहे री नलिनी तू कुमिलानी। तेरे ही नालि सरोवर पानी॥ जल में उतपति जल में बास, जल में नलिनी तोर निवास। ना तलि तपति न ऊपरि आगि, तोर हेतु कहु कासनि ...

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