लेखनी कविता - परनारी राता फिरैं, चोरी बिढ़िता खाहिं

57 Part

35 times read

0 Liked

परनारी राता फिरैं, चोरी बिढ़िता खाहिं । दिवस चारि सरसा रहै, अंति समूला जाहिं ॥1॥ भावार्थ - परनारी से जो प्रीति जोड़ते हैं और चोरी की कमाई खाते हैं, भले ही ...

Chapter

×