लेखनी कविता -हरिजन सेती रूसणा, संसारी सूँ हेत

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हरिजन सेती रूसणा, संसारी सूँ हेत । ते नर कदे न नीपजैं, ज्यूं कालर का खेत ॥1॥ भावार्थ - हरिजन से तो रूठना और संसारी लोगों के साथ प्रेम करना - ...

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