लेखनी कविता - कबीर' नौबत आपणी, दिन दस लेहु बजाइ

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कबीर' नौबत आपणी, दिन दस लेहु बजाइ । ए पुर पाटन, ए गली, बहुरि न देखै आइ ॥1॥ भावार्थ - कबीर कहते हैं-- अपनी इस नौबत को दस दिन और बजालो ...

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