लेखनी कविता - निरबैरी निहकामता, साईं सेती नेह

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निरबैरी निहकामता, साईं सेती नेह । विषिया सूं न्यारा रहै, संतनि का अंग एह ॥1॥ भावार्थ - कोई पूछ बैठे तो सन्तों के लक्षण ये हैं- किसी से भी बैर नहीं, ...

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