लेखनी कविता -मन ना रँगाए, रँगाए जोगी कपड़ा

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मन ना रँगाए, रँगाए जोगी कपड़ा ।। आसन मारि मंदिर में बैठे, ब्रम्ह-छाँड़ि पूजन लगे पथरा ।। कनवा फड़ाय जटवा बढ़ौले, दाढ़ी बाढ़ाय जोगी होई गेलें बकरा ।। जंगल जाये जोगी ...

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