लेखनी कविता - आमों की तारीफ़ में - ग़ालिब

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आमों की तारीफ़ में / ग़ालिब हाँ दिल-ए-दर्दमंद ज़म-ज़मा साज़ क्यूँ न खोले दर-ए-ख़ज़िना-ए-राज़ ख़ामे का सफ़्हे पर रवाँ होना शाख़-ए-गुल का है गुल-फ़िशाँ होना मुझ से क्या पूछता है क्या ...

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