लेखनी कविता - अपना अहवाल-ए-दिल-ए-ज़ार कहूँ - ग़ालिब

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अपना अहवाल-ए-दिल-ए-ज़ार कहूँ / ग़ालिब ये न थी हमारी क़िस्मत के विसाले यार [1]होता अगर और जीते रहते यही इन्तज़ार होता शब्दार्थ: [1]प्रिय से मिलन ...

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