लेखनी कविता - फिर हुआ वक़्त कि हो बाल कुशा मौजे-शराब - ग़ालिब

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फिर हुआ वक़्त कि हो बाल कुशा मौजे-शराब / ग़ालिब फिर हुआ वक़्त कि हो बालकुशा[1]मौजे-शराब[2] दे बते मय[3]को दिल-ओ-दस्ते शना[4] मौजे-शराब पूछ मत वजहे-सियहमस्ती[5]-ए-अरबाबे-चमन[6] साया-ए-ताक[7] में होती है हवा मौजे-शराब ...

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