लेखनी कविता -ये हम जो हिज्र में दीवार-ओ-दर को देखते हैं - ग़ालिब

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ये हम जो हिज्र में दीवार-ओ-दर को देखते हैं / ग़ालिब ये हम जो हिज्र में दीवार-ओ-दर को देखते हैं कभी सबा को, कभी नामाबर को देखते हैं वो आए घर ...

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