लेखनी कविता - वह शब-ओ-रोज़-ओ-माह-ओ-साल कहां - ग़ालिब

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वह शब-ओ-रोज़-ओ-माह-ओ-साल कहां / ग़ालिब  वह फ़िराक़ और वह विसाल कहां वह शब-ओ-रोज़-ओ-माह-ओ-साल कहां फ़ुर्‌सत-ए कारोबार-ए शौक़ किसे ज़ौक़-ए नज़्‌ज़ारह-ए जमाल कहां दिल तो दिल वह दिमाग़ भी न रहा शोर-ए ...

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